अर्थ: हे प्राण स्वरूप दुःखहर्ता, सर्व व्यापक आनंद के देने वाले प्रभो! आओ सर्वज्ञ और सकल जगत के उत्पादक हैं. हम आपके उस पूजनीय पापनाशक स्वरूप तेज का ध्यान करते हैं जो हमारी बुद्धियों को प्रकाशित करता है. हे पिता! आप से हमारी बुद्धि कदापि विमुख न हो. आप हमारी बुद्धियों में सदैव प्रकाशित रहें और हमारी बुद्धियों को सत्कर्मों में प्रेरित करें, ऐसी हमारी प्रार्थना है.
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