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शनिवार, 17 सितंबर 2011

श्रेष्ठ क्या: शाकाहार या मांसाहार

बहुत दिनों से सोच रही थी की शाकाहार और मांसाहार के ऊपर कुछ तथ्यात्मक प्रस्तुत कर सकू और आज वह दिन आ ही गया. मेरी कई दिनों की खोज और आत्ममंथन द्वारा जुटाए गए तथ्य हैं जो मई यहाँ पर प्रस्तुत कर रही हूँ. मूल रूप से मै बचपन से ही शाकाहारी हूँ और पहले इसे सिर्फ धर्म और अधर्म की दृष्टि से देखती थी किन्तु जब डॉ. जाकिर नाइक को टी.वी. पर इस विषय में यह तथ्य कि
१.  "हमारे भी कैनाइन दांत हैं इसलिए इश्वर चाहता है की हम मांसाहारी भी बने. यदि वह नहीं चाहता कि हम मांसाहारी खाना खाए तो ये दांत क्यों दिए."
२. "मांसाहार में पौष्टिकता अधिक होती है."
३. "हमारा पाचन तंत्र मांस को पचाने में सक्षम है."
४. "हम भोले पशुओं का मांस खाते है इसलिए हम भी भोले है." 
५. "किसी पशु को धीरे धीरे जिबह करने से दर्द नहीं होता." 
६. "पेड़ पोधो कोभी दर्द होता है इसलिए या उन्हें भी नहीं खाना चाहिए या मांस भी उत्तम है."

आदि सुने मन पीड़ा से भर उठा कि कोई मनुष्य सिर्फ अपने आप को सही साबित करने के लिए कैसे कैसे कुतर्क दे सकता है. यहाँ मै कुछ तथ्य प्रस्तुत कर रही हूँ उसके बाद आप ही निर्णय करे कि क्या सही है और क्या गलत.

१. कैनाइन दांत की तुलना

डॉ जाकिर नाइक कहते हैं कि हमारे कैनाइन दांत होते है जो सिर्फ मांसाहार के काम आते हैं. वास्तव में हमारे सामने के दांतों और दाढ़ो के बीच जो नुकीला दांत है वह कैनाइन दांत(रदनक दन्त ) कहलाता है. इसका मुख्या कार्य चीजो को पकड़ कर काटना होता है. यह बहुत ही मजबूत और अन्य दांतों कि तुलना में नुकीला होता है. उपरी रदनक दन्त को आई टूथ या नेत्र दन्त भी कहा जाता है. इसी प्रकार के दांत अन्य जीवो में भी पाए जाते हैं. जैसे शेर. चीता, बंदर इत्यादि 


मनुष्य के दांत 
यदि यह दांत हमें भी मांसाहार के लिए दिए हैं तो मै पूछती हूँ कि क्या किसी मनुष्य के दांत इतने मजबूत होते है कि किसी प्राणी का शिकार कर सके. क्या हमारे दांत ऐसे है जो किसी जानवर कि गर्दन में घुसा दिए जाये और उसकी मृत्यु हो जाये. जिस प्रकार शेर, चीता, बिल्ली, कुत्ता आदि जानवर जैसे अपने शिकार कि गर्दन जकड लेते हैं उसी तरह हम भी अपने शिकार कि गर्दन जकड सकते हैं? क्या हमारे शरीर में और दांतों में इतनी ताकत है? क्या हमारे दांत किसी जानवर के खाल को चीरते हुए उसे मार सकते हैं? 
आप कहेंगे कि हम तो काट कर और पका कर खाने के लिए बने हैं तो फिर इन दांतों का महत्त्व ख़त्म हो जाता है क्योकि पके हुए भोजन को  दाढ़ो से चबा कर खाया जाता है कैनाइन दांतों से फाड़ कर नहीं.





बंदर के दांत 
तब इन दांतों का अस्तित्व क्यों है? उसका उत्तर यह है कि हम सिर्फ पका हुआ भोजन ही नहीं खाते हमारे भोजन में बड़ी मात्रा में कच्चे फल भी खाते है जीमे इनका प्रयोग होता है विशेष कर सेब जैसे फलों में. 

एक अन्य तथ्य यह भी है कि बंदर के कैनाइन दांत तो हमसे भी नुकीले होते हैं फिर भी वह किसी जीव का शिकार नहीं करते.
हमारे दांत देखने में गाय के दांतों कि तरह सपाट अधिक हैं और शेर कि तरह नुकीले तो बंदर के दांत हैं.

२. मांसाहारी भोजन अधिक पोष्टिक होता है:

शाकाहार और मांसाहार का तुलनात्मक अध्ययन:

१.प्रोटीन: अनाज २२%, दाल २५%, अंडा १३%, मांस १८.५%, सोयाबीन ४३.२% इसका अर्थ की १ किलो सोयाबीन=३ किलो मांस 
२.कार्बोहाईड्रेट्स: अनाज ५६%,दाल ६०% अंडा ०%,मांस ०%, सोयाबीन २२.९%
३. लोह तत्व: अनाज ९.८%,दाल ९.८%,अंडा २.१%, मांस २.५%, सोयाबीन ११.५%
४. फोस्फोरस:  अनाज ०.२५%, दाल ०.३७%, अंडा ०.२२%, मांस ०.१५%, सोयाबीन ०.६८%
५. कैलोरीज: अनाज ३३४-३७२, दाल ३३४-३७२, अंडा १७३, मांस १९४,सोयाबीन ४३२ 

अगले प्रश्नों का उत्तर दूसरी पोस्ट में दूँगी. अधिक जानकारी के लिए पढ़े 

1 comments:

@ कोई मनुष्य सिर्फ अपने आप को सही साबित करने के लिए कैसे कैसे कुतर्क दे सकता है.
डॉ. जाकिर नाइक के कुटिल कुतर्क,इतने बचकाना है जैसे कोई बिगड़ा बच्चा अपनी बदियों को सही साबित करने का असफल प्रयास करता है।

दांतो के बारे में आपने उस कुतर्क का सटीक खण्ड़न किया। बधाई!!

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